वाराणसी में ज्ञानवापी विवादित ढाँचे के अंदर स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा-अर्चना को लेकर सोमवार (12 सितंबर 2022) को वाराणसी की जिला अदालत ने हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया। फिर क्या था जैसा कि पहले से अपेक्षित था देश के लिबरल-वामपंथियों की जमात का रोना-धोना शुरू हो गया। इस्लामवादियों और देश के लिबरल पत्रकारों ने इसकी तुलना बाबरी मस्जिद से करनी शुरू कर दी।
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इन्हें इस बात का डर सताने लगा कि कहीं कोर्ट के फैसले के बाद ज्ञानवापी के विवादित ढाँचे को भी न ध्वस्त कर दिया जाय। द वायर की कट्टरपंथी इस्लामिक पत्रकार आरफा खानुम शेरवानी ने ट्विटर पर इसे इस्लाम पर नया जख्म करार दिया। वहीं इंडिया टुडे के कथित लिबरल और कॉन्ग्रेस समर्थक पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने इसे विभाजनकारी कानूनी लड़ाई करार दिया और इशारा किया कि ज्ञानवापी का हाल भी बाबरी की तरह हो सकता है।
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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के उपाध्यक्ष सैयद मसूद उल हसन ने तो दावा भी कर दिया कि कोर्ट के आदेश से ये स्पष्ट हो गया है कि ज्ञानवापी अगली बाबरी मस्जिद होगी। अगले 20 साल के अंदर इसे ध्वस्त कर मंदिर बना दिया जाएगा। गौरतलब है कि जब से कोर्ट ने ज्ञानवापी विवादित ढाँचे का सर्वे करवाया है और उसके वजू खाने से शिवलिंग मिलने का खुलासा हुआ है, तभी से लिबरल और वामपंथियों का रोना लगातार जारी है।
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लिबरल जमात तो ज्ञानवापी के अंदर मंदिर होने के मिले रहे सबूतों को पूरी तरह से नकारती रही है, लेकिन सच से पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता है। गौरतलब है कि वाराणसी में काशी विश्ननाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी मस्जिद को मंदिर बताया जा रहा है। ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि जिस जगह ज्ञानवापी है, वहाँ पहले मंदिर था और मुगल आक्रांता औरंगजेब ने इसे तुड़वाकर मस्जिद बनवा दिया था। सर्वे के दौरान भी मस्जिद के अंदर से हनुमान जी,भगवान गणेश और वजू खाने के सामने ही नंदी की मूर्ति मिली थी। यही मुख्य कारण था कि मुस्लिम पक्ष लगातार सर्वे का विरोध कर रहा था।
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