भारत में आज मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर होने वाली अजान का मुद्दा बहुत बड़ा होता जा रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं दुनिया में जब लाउडस्पीकर नहीं हुआ करते थे तब अजान कैसे पढ़ी जाती जाती थीं।
जी न्यूज की एक रिपोर्ट के अनुसार आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि 1970 के दशक से पहले भारत की मस्जिदों में लाउडस्पीकर का ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता था और तब भारत के मुसलमान लाउडस्पीकर को वर्जित मानते थे और इसके इस्तेमाल का विरोध करते थे। उनका कहना था कि लाउडस्पीकर आधुनिकता का प्रतीक है और मुसलमानों को अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। देखें पूरा वीडियो:-
#DNA : पहले धर्म आया या लाउडस्पीकर?@sudhirchaudhary
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— Zee News (@ZeeNews) April 19, 2022
लेकिन आपको बताते चलें की 1970 के दशक के बाद ये धारणा धीरे-धीरे बदली और लगभग सभी मस्जिदों में लाउडस्पीकर को अपना लिया गया। वहीं दुनिया में पहली बार किसी मस्जिद पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल वर्ष 1936 में हुआ था। उस समय सिंगापुर की मस्जिद सुल्तान पर लाउड स्पीकर से अजान हुई थी यानी आज से 86 साल पहले मस्जिदों पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं होता था। जब लाउडस्पीकर नहीं आया था, तब भारत समेत दुनियाभर की मस्जिदों में मुंह से अजान की जाती थी।
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लेकिन आज अगर आप भारत में ऐसा करने के लिए कहेंगे तो इसे तुरंत एक धर्म विशेष के खिलाफ मान लिया जाएगा और ये कहा जाएगा कि सरकार मुसलमानों के अधिकारों का दमन कर रही है। लेकिन हमें लगता है कि आज जो नियम उत्तर प्रदेश में लागू हुए हैं, वो पूरे भारत में लागू होने चाहिए। क्योंकि ध्वनि प्रदूषण के मुद्दे को हम जितना मामूली समझते हैं, ये उससे कहीं ज्यादा गम्भीर है।
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गौरतलब है की हमारे देश में कुछ लोग ये कहते हैं कि धर्म लाउस्पीकर के बिना गूंगा रह जाएगा, उन्हें हम बताना चाहते हैं कि लाउड स्पीकर को आए 150 साल भी नहीं हुए हैं, जबकि हिन्दू धर्म पांच हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। बौद्ध धर्म ढाई हजार साल पुराना है. ईसाई धर्म दो हजार साल पुराना है। इस्लाम धर्म 1300 साल पुराना और सिख धर्म लगभग 500 साल पुराना है।
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