मस्जिदों में लाउडस्पीकरों से होने वाली अजान के मामले पर मौलाना शोयब रहमान और हिंदू धर्म गुरु चेतना जी की आमने-सामने हुई तीखी बहस में चेतना जी इसे गलत करार दिया.
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में स्थित इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी की कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव ने प्रयागराज के जिलाधिकारी श्री भानु चंद्र गोस्वामी को पत्र लिख कर कहा है कि “मस्जिद की अजान से उनकी नींद में खलल पड़ता है, ऐसे में एक्शन लिया जाए”.
इस मामले पर अब स्थानीय रूप हर क्षेत्र में बहस गर्म हो चुकी है, चाहे वो राजनीतिक और धार्मिक घमासान तेज हो गई है. आपको बता दें की देश के संविधान में अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को स्वच्छ जीवन जीने का अधिकार प्रदान करता है. इससे पूर्व भी जावेद अख्तर और सोनू निगम जैसे दिग्गजों ने भी इस तरह से लाउडस्पीकर पर होने वाली अजान को लेकर आपत्ति जताई है.
लाउडस्पीकर पर अजान मामले में चेतना जी का मत
जब से इस पत्र का खुलासा हुआ है तब से सियासी और धार्मिक बहस तेज हो गई है. इसी कर्म में एक समाचार एजेंसी से बात करते हुए मौलाना शोयब रहमान ने कहा की “30 साल से संगीता श्रीवास्तव के कुछ नहीं हुआ मगर जैसे ही वे इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी की कुलपति बनी तो उनके कानों में दर्द शुरू हो गया, हमारी अजान 2 मिनट ही पढ़ी जाती है लेकिन दुसरे धार्मिक ग्रन्थों को तीन-तीन दिनों तक लाउडस्पीकर में पढ़ा जाता है”.
इन बातों का जवाब देते हुए हिंदू धर्म गुरु चेतना जी ने कहा की “अजान तो भागवान की इबादत और ये तो ईश्वर व आपके बिच की बात है फिर इसको जबरदस्ती दूसरों पर थोपकर एक भय उत्पन्न करना चाहते हैं, हमारे मंदिर और धार्मिक स्थलों में कहीं पर भी लाउडस्पीकर आप नहीं पाएंगे और जब सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है तो इनकी ये क्या जिद है”.
लाउडस्पीकर पर अजान के मुद्दे पर सियासत
इस मसले में राजनीतिक घमासान भी शुरू हो गया है, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के नेता अनुराग भदोरिया ने कहा की “जब से भाजपा की सरकार बनी है, सिर्फ जाति-धर्म की बात हो रही है रोज़गार पर जोर नहीं दिया जा रहा है, किसी शिक्षा संस्थान को इस तरह के मसले पर जोर नहीं देना चाहिए”.
इनकी बातों का प्रतिउत्तर देते हुए भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता नवीन श्रीवास्तव ने कहा की “नमाज़ पढ़ना करना अधिकार है, लेकिन कोर्ट पहले ही कह चुका है कि लाउडस्पीकर लगाना निजता का हनन करना है, लाउडस्पीकर का प्रयोग करना संवैधानिक रूप से उचित नहीं है”.
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