महादेव शिव को समर्पित ऐरावतेश्वर मंदिर की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण मंदिर परिसर की सीढ़ियों पर पैर रखने से उत्पन्न रहस्यमय ध्वनी हैं.
तमिलनाडू के कुंभकोणम के पास दारासुरम स्थित हैं भगवान शिव को समर्पित ऐरावतेश्वर मंदिर अत्यंत ही भव्य और दुर्लभ हैं, रहस्यों से भरा हुए यह वर्तमान मंदिर 800 सालों से भी पुराना हैं. बता दें की वर्तमान मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजराजा चोल द्वितीय करवाया था. इस मंदिर की वास्तु और रहस्य आज भी लोगों को आश्चर्य में डाल देते हैं. मंदिर परिसर की सीढ़ियों पर पैर रखने से एक प्रकार की ध्वनी उत्पन्न होती हैं, जो की मंदिर के आकर्षण और प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण भी बताया जा रहा है.
ऑपइंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक पौरोणिक कथाओं में माना गया है की देवताओं के राजा देवराज इंद्र का वाहक ऐरावत नामक एक श्वेत हाथी था, जिसका रंग पूरा ही सफेद होने के कारण अत्यंत सुंदर दीखता था. एक बार क्रोध में आकर ऋषि दुर्वासा ने उसे एक श्राप दिया, श्राप के प्रभाव से ऐरावत का सफेद रंग ढल गया और उसका शरीर किसी अन्य रंग में बदल गया. इससे दुखी होकर ऐरावत ने मंदिर के जल से स्नान कर भगवान महादेव की तपस्या करी.
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तपस्या और आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ऐरावत को उसके पुनः वास्तविक स्वरूप प्रदान कर दिया, कदाचित यही कारण है की इस मंदिर को ऐरावतेश्वर मंदिर कहा जाता है. बताया जाता है की ऐरावत के अलावा मृत्यु के राजा यम भी एक ऋषि के श्राप से पीड़ित हुए. इस कारण उनका शरीर भयंकर जलन से ग्रसित हो गया. इस पीड़ा से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यम ने भी इसी मंदिर में स्थित सरोवर में स्नान किया और भगवान शिव की पूजा की. इसके बाद उन्हें अपनी पीड़ा से मुक्ति मिली.
विक्की पीडिया की जानकारियों के अनुसार ऐरावतेश्वर मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का एक हिंदू मंदिर है जो दक्षिणी भारत के तमिलनाड़ु राज्य में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है, 12वीं सदी में राजराजा चोल द्वितीय द्वारा निर्मित इस मंदिर को तंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर तथा गांगेयकोंडा चोलापुरम के गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर के साथ यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर स्थल बनाया गया है, इन मंदिरों को महान जीवंत चोल मंदिरों के रूप में जाना जाता है.
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